13 मार्च 1940 आज ही के दिन जलियांवाला बाग नरसंहार के हत्यारे को उसके घर में घुस कर मारा सरदार उधम सिंह ने
साथियों इस देश और देश की आवाम की आजादी के लिए क्या-क्या नहीं किया हमारे क्रांतिकारी वीरों ने कितनी कष्ट भरी जिंदगी का
सफर तय किया यह तो खुद वही जानते थे कोई और नहीं इतिहास इस बात का साक्षी है आज भी अंग्रेजी जुल्म की दास्तां हमारे रोंगटे खड़ा कर देती है चाहे वह घटना काकोरी कांड की हो या फिर
जलियांवाला बाग जब भी इतिहास में 1919 तारीख हो या 13 मार्च 1940 दोनों ही तारीख है उस भयानक मंजर को याद दिलाती हैं शांतिपूर्वक जलिया वाले बाग में सभा कर रहे हजारों भारतीयों को
अंग्रेज गवर्नर जनरल माइकल ओ डायर ने गोलियां चलवा कर शहीद करा दिया था यह उस वक्त की सबसे बर्बर घटना हुई यह भयानक मंजर सरदार उधम सिंह ने अपनी आंखों से देखा हजारों
भारतीयों को अपने सामने मौत के घाट उतरते देख उधम सिंह बड़े दुखी हुए इस घटना ने उनके दिलो-दिमाग पर गहरा असर डाला उस वक्त महज उनकी उम्र 10 से 12 वर्ष की थी उन्होंने जलियां वाले
बाग की इन से लथपथ मिट्टी को हाथ में लेकर सौगंध खाई जब तक मैं अपने देशवासियों की जान का हत्यारा जनरल ओ माइकल डायर को मौत के घाट उतार नहीं दूंगा मैं चैन से नहीं बैठूंगा वहीं एक तरफ
देश में नेताजी सुभाष चंद्र बोस, चंद्र शेखर आजाद , सरदार भगत सिंह , अशफाक उल्ला ख़ां , राम प्रसाद बिस्मिल राजगुरु सुखदेव आदि अनेक क्रांतिकारियों ने भी अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने
की जंग छेड़ दी थी सरदार उधम सिंह के सर से बचपन में मां बाप का साया उठ गया एक तरह से वह अनाथ हो गए उनके सामने बहुत बड़ी समस्या थी जीवन यापन करने की उम्र कम जिम्मेदारियों
का भार ज्यादा एक तरफ लक्ष्य दूसरी तरफ आर्थिक तंगी फिर भी हौसले बुलंद जिस तरह से उम्र बढ़ती गई अनेक कार्य किए झूठे बर्तन साफ किए बढ़ाई गिरी का काम किया, अनाथालय में रहे
तमाम कष्टों को हंसते हुए सेट कर पढ़ाई और अपने मिशन 21 वर्ष कुछ चंदे के पैसे इकट्ठे करके भारत से लंदन पहुंचे उस समय रहकर एक कार खरीदी फिर एक पिस्तौल खरीदी उसको एक किताब में
कटिंग करके छुपाया अब वो घड़ी सामने आ रही थी जिसकी महान योद्धा वीर अपनी प्रतिज्ञा पूरा करने के लिए भारत से लंदन गया अपने हजारों भारतीयों का बदला लेने की सौगंध खाई थी अब
सरदार उधम सिंह के सामने दुश्मन की मौत पल-पल नजर आ रही थी , दुश्मन को अंदाजा भी नहीं था उसकी मौत बनकर भारत की माटी का वीर सपूत उसको चंद मिनटों में काल के मुंह में भेजने वाला
है 13 मार्च 1940 लंदन के कैक्स टन हाल में एक सभा को संबोधित कर रहा माइकल ओ डायर अपनी काली करतूत की बहादुरी पेश कर रहा था, उस वक्त भरी सभा में सरदार उधम सिंह ने
अपनी सौगंध को पूरा करते हुए पिस्तौल से जनरल ओ डायर पर गोलियां दाग दी और दुश्मन को धराशाई कर दिया और भारत की माटी का सपूत भागा नहीं और बोल दिया लंदन वासियों पकड़ लो
भारत का शेर आ गया मुझे आज बहुत खुशी हो रही है मैंने अपने हजारों बेगुनाह भारतीयों की मौत का बदला लिया ,अब मुझे फांसी भी दे दो तो कोई गम नहीं 4 जून 1940 को हत्या का दोषी ठहराया
गया 31 जुलाई 1940 को लंदन की जेल में फांसी दे कर शहीद कर दिया , कोटि कोटि नमन सरदार ऊधम सिंघ जी व उन महान क्रांतिकारियों को जो देश के लिए फांसी का फंदा चूम गए
मगर अफसोस होता है देशवासी क्रांतिकारियों के बलिदान को भूलते जा रहे हैं और इनको जाति धर्म में बैठकर देखते हैं क्रांतिकारियों की ना कोई जात होती है ना मजहब उनकी तो जात केवल मानवता और
देश की भलाई संस्था आप और हम राष्ट्रीय भ्रष्टाचार अपराध मुक्ति संगठन 5 वर्ष से इनको क्रांतिकारी शहीदी दर्जा इनके इतिहास को पाठ्यक्रम में आदि की मांग भारत सरकार से निरंतर कर रहा है
सरदार उधम सिंह के नाम पर लगभग 3 वर्ष से उत्तर प्रदेश के जेवर एयरपोर्ट क्रांतिकारी उधम सिंह के नाम पर रखने की मांग भारत सरकार व प्रदेश सरकार से की जा रही है इसी तरह अन्य
क्रांतिकारियों के नाम पर भी मगर अफसोस क्रांतिकारियों के समर्थन में देशवासियों की आवाज धीमी है सरकार तो सरकार इनके समर्थन में चंद देशभक्त लोग आते हैं वाकी स्वार्थी लोगों को यह बेकार का
काम लगता है सिर्फ राजनीतिक रोटी सेकना उनको पसंद
बी एस बेदी राष्ट्रीय अध्यक्ष संस्था आप और हम राष्ट्रीय भ्रष्टाचार अपराध मुक्ति संगठन , जय हिन्द
साथियों इस देश और देश की आवाम की आजादी के लिए क्या-क्या नहीं किया हमारे क्रांतिकारी वीरों ने कितनी कष्ट भरी जिंदगी का
सफर तय किया यह तो खुद वही जानते थे कोई और नहीं इतिहास इस बात का साक्षी है आज भी अंग्रेजी जुल्म की दास्तां हमारे रोंगटे खड़ा कर देती है चाहे वह घटना काकोरी कांड की हो या फिर
जलियांवाला बाग जब भी इतिहास में 1919 तारीख हो या 13 मार्च 1940 दोनों ही तारीख है उस भयानक मंजर को याद दिलाती हैं शांतिपूर्वक जलिया वाले बाग में सभा कर रहे हजारों भारतीयों को
अंग्रेज गवर्नर जनरल माइकल ओ डायर ने गोलियां चलवा कर शहीद करा दिया था यह उस वक्त की सबसे बर्बर घटना हुई यह भयानक मंजर सरदार उधम सिंह ने अपनी आंखों से देखा हजारों
भारतीयों को अपने सामने मौत के घाट उतरते देख उधम सिंह बड़े दुखी हुए इस घटना ने उनके दिलो-दिमाग पर गहरा असर डाला उस वक्त महज उनकी उम्र 10 से 12 वर्ष की थी उन्होंने जलियां वाले
बाग की इन से लथपथ मिट्टी को हाथ में लेकर सौगंध खाई जब तक मैं अपने देशवासियों की जान का हत्यारा जनरल ओ माइकल डायर को मौत के घाट उतार नहीं दूंगा मैं चैन से नहीं बैठूंगा वहीं एक तरफ
देश में नेताजी सुभाष चंद्र बोस, चंद्र शेखर आजाद , सरदार भगत सिंह , अशफाक उल्ला ख़ां , राम प्रसाद बिस्मिल राजगुरु सुखदेव आदि अनेक क्रांतिकारियों ने भी अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने
की जंग छेड़ दी थी सरदार उधम सिंह के सर से बचपन में मां बाप का साया उठ गया एक तरह से वह अनाथ हो गए उनके सामने बहुत बड़ी समस्या थी जीवन यापन करने की उम्र कम जिम्मेदारियों
का भार ज्यादा एक तरफ लक्ष्य दूसरी तरफ आर्थिक तंगी फिर भी हौसले बुलंद जिस तरह से उम्र बढ़ती गई अनेक कार्य किए झूठे बर्तन साफ किए बढ़ाई गिरी का काम किया, अनाथालय में रहे
तमाम कष्टों को हंसते हुए सेट कर पढ़ाई और अपने मिशन 21 वर्ष कुछ चंदे के पैसे इकट्ठे करके भारत से लंदन पहुंचे उस समय रहकर एक कार खरीदी फिर एक पिस्तौल खरीदी उसको एक किताब में
कटिंग करके छुपाया अब वो घड़ी सामने आ रही थी जिसकी महान योद्धा वीर अपनी प्रतिज्ञा पूरा करने के लिए भारत से लंदन गया अपने हजारों भारतीयों का बदला लेने की सौगंध खाई थी अब
सरदार उधम सिंह के सामने दुश्मन की मौत पल-पल नजर आ रही थी , दुश्मन को अंदाजा भी नहीं था उसकी मौत बनकर भारत की माटी का वीर सपूत उसको चंद मिनटों में काल के मुंह में भेजने वाला
है 13 मार्च 1940 लंदन के कैक्स टन हाल में एक सभा को संबोधित कर रहा माइकल ओ डायर अपनी काली करतूत की बहादुरी पेश कर रहा था, उस वक्त भरी सभा में सरदार उधम सिंह ने
अपनी सौगंध को पूरा करते हुए पिस्तौल से जनरल ओ डायर पर गोलियां दाग दी और दुश्मन को धराशाई कर दिया और भारत की माटी का सपूत भागा नहीं और बोल दिया लंदन वासियों पकड़ लो
भारत का शेर आ गया मुझे आज बहुत खुशी हो रही है मैंने अपने हजारों बेगुनाह भारतीयों की मौत का बदला लिया ,अब मुझे फांसी भी दे दो तो कोई गम नहीं 4 जून 1940 को हत्या का दोषी ठहराया
गया 31 जुलाई 1940 को लंदन की जेल में फांसी दे कर शहीद कर दिया , कोटि कोटि नमन सरदार ऊधम सिंघ जी व उन महान क्रांतिकारियों को जो देश के लिए फांसी का फंदा चूम गए
मगर अफसोस होता है देशवासी क्रांतिकारियों के बलिदान को भूलते जा रहे हैं और इनको जाति धर्म में बैठकर देखते हैं क्रांतिकारियों की ना कोई जात होती है ना मजहब उनकी तो जात केवल मानवता और
देश की भलाई संस्था आप और हम राष्ट्रीय भ्रष्टाचार अपराध मुक्ति संगठन 5 वर्ष से इनको क्रांतिकारी शहीदी दर्जा इनके इतिहास को पाठ्यक्रम में आदि की मांग भारत सरकार से निरंतर कर रहा है
सरदार उधम सिंह के नाम पर लगभग 3 वर्ष से उत्तर प्रदेश के जेवर एयरपोर्ट क्रांतिकारी उधम सिंह के नाम पर रखने की मांग भारत सरकार व प्रदेश सरकार से की जा रही है इसी तरह अन्य
क्रांतिकारियों के नाम पर भी मगर अफसोस क्रांतिकारियों के समर्थन में देशवासियों की आवाज धीमी है सरकार तो सरकार इनके समर्थन में चंद देशभक्त लोग आते हैं वाकी स्वार्थी लोगों को यह बेकार का
काम लगता है सिर्फ राजनीतिक रोटी सेकना उनको पसंद
बी एस बेदी राष्ट्रीय अध्यक्ष संस्था आप और हम राष्ट्रीय भ्रष्टाचार अपराध मुक्ति संगठन , जय हिन्द
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