ट्रिपल एक्स फिल्में (सेक्सी, पोर्न) एक साजिश जिससे मुसलमान बे ख़बर हैं। "पोर्नग्राफी" एक बहुत पुराना नासूर है, अक्सर हम सोचते हैं कि आख़िर यह खेल शुरू कब हुआ और इसका तारीख़ी पसे मंज़र क्या है? इसके वजूद की बुनियाद क्या थी?
दोस्तों! तारीख़ में सब से पहले पोर्नग्राफी बतौर हथियार सुलतान सलाउद्दीन अय्यूबी (सन 1137 से 1193) के दौरे हुक़ूमत में हुई। इसे बतौर हथियार सब से पहले सलीबी (अंग्रेज़) बादशाहों ने इस्तेमाल किया।
कहानी कुछ यूँ है कि सलीबी हर मैदान में मुसलमान नौजवानों के हाथों शिकस्त होने से लगातार परेशांन थे। इस्लामी फौज़ सलीबी सेना पर भारी साबित हो रही थी सलिबियों की सोच की धारा उस वक़्त बदली जब डेढ़ लाख मुसलमान फौज़ ने अटलांटिक तट पर पंद्रह लाख सलिबी लड़ाकों की लाशों का ढेर लगा दिया, इस मौके पर सलीबी फौज़ का बादशाह रोनाल्ड फ़ूट फ़ूट कर रोया और एक बड़ी मीटिंग का आगाज़ हुआ। इस मीटिंग में मुस्लिम और सलीबी फ़ौजों की तुलना की गई और मालूम हुआ मुसलमान रात भर सजदों
में रोते हैं और दिन भर मैदानों में ललकारते हैं उनके अंदर एक दुनियाँ आबाद है जिसे वह ईमान कहते हैं यही ईमान उन्हें दुनियाँ के हर खौफ़ और डर और लज़्ज़त परस्ती से बहुत ऊपर उन्हें बेहतरीन शुजाअ लड़ाका बनाए रखता है, जबकि सलीबी फ़ौजें रात भर ज़िना और अय्याशी की महफिलों में और दुनियाँ की रंग रैलियों में मशगूल रहते हैं लेहाज़ा दुनियाँ छोड़ कर एक नए जहाँ का खौफ़ उन्हें शिकस्त फाश से दो चार करता है इसके अलावा दौराने जंग मुसलमान फ़ौजियों की आँखो से जो वहशत टपकती है वह सलीबी कुव्वतों पर खौफ़ तारी कर देती है इसके साथ "नारे तक़बीर" की फ़लक़ शिगाफ़ सदाए और मुसलमानों का अपनी अपनी जगह फ़ौलाद बन जाना भी सलिबियों के लिए एक मसला बन गया था...
सलिबियों की इस तारीख़ी मीटिंग में हरमन नामी (यहूदी) इंटेलीजेंस ऑफिसर भी मौजूद था। यह वह शख़्स था जिसने सलीबी तारीख़ में मुसलमानों को सब से ज़ियादा नुक़सान पहुंचाया था। यह निहायत शातिर व ज़हीन और फ़ित्नाबाज़ शख़्स था इसने मुसलमानों और सलीबी नौजवानों की नफ़सियात पर बात करते हुए कहा कि मेरी साठ सालह ज़िन्दगी का तजुर्बा है कि एक अय्याशी पसंद वजूद कभी भी ज़िन्दगी के मैदान में बेहतरीन सिपाही नहीं बन सकता ख़ुसूसन वह लोग जो सेक्स के मुआमलात में ज़ियादा दिलचस्पी रखते हैं उनकी जिस्मानी और रूहानी ताक़तें ख़त्म होकर रह जाती हैं अगर मैं मुस्लिम फ़ौज की बात करूँ तो मुसलमान फ़ौज में ऐसे नौजवानों की तादाद ज़ियादा है जो सेक्स की लज़्ज़त से अक्सर ना आशना है और
जो शादी शुदा भी हैं वह भी इस चीज़ को एक हद तक आज़मा पाते हैं। तस्वीर की रेनाइयाँ और खूबसूरत नज़ारे हमेशा उनकी पहुँच से दूर रहें हैं उन्हें मज़हब से आगे और पीछे कुछ नहीं दिखाई देता लेहाज़ा हम अगर उनमें जिस्मानी भूख को पैदा कर दें तो उनकी सोच और नज़रियात (आइडियालाॅजी) को कमज़ोर किया जा सकता है इस मिशन की क़ामयाबी की एक मिसाल वह मुसलमान बादशाह भी है जो शुरू में सुलतान अय्यूबी के साथ थे लेकिन हमारी खूबसूरत लड़कियों ने जब से उन्हें अपनी हसींन अदाओं का असीर किया है
तब से वह ख़ुदा और रसूल स. को जानते ही नहीं हैं उन्हें सुलतान अय्यूबी अपना सब से बड़ा दुश्मन नज़र आता है उन मुसलमान वज़ीफ़ा ख़ोरों में से जर्नल भी शामिल हैं जिनकी हुक़ूमत बहादुरी में मैदानों के नक़्शे बदल डाला करते थे आज वह सलिबियों से निगाहें झुका कर बात करते हैं क्योंकि हम उनके अंदर औरत और जिन्सियात की रूह दाख़िल कर चुके हैं अगर यही तरीक़ा पुरे मुसलमान फ़ौज पर आज़माया जाए तो यक़ीनन हम क़ामयाब होंगें क्योंकि मुसलमान नौजवानों के लिए यह बिल्कुल नई चीज़ होगी और वह इनके लिए जुनूनी हो सकते हैं।
हरमन के इस ख़याल पर रोनाल्ड ने सवाल उठाया और उसने कहा: हम बहुत बार निहायत ख़ूबसूरत लड़कियां मुसलमान फ़ौज में दाख़िल कर चुके हैं लेकिन मुसलमान फ़ौज उन हसींन लड़कियों की तरफ़ देखने की तक़लीफ़ भी नहीं करती और आख़िर लड़कियाँ मुसलमान फ़ौज का किरदार देख कर सलीबी हिमायत छोड़ जाती हैं लेहाज़ा तुम्हारा यह मंसूबा नाकाम है।
हरमन ने फौरन जवाब पेश करते हुए कहा: हुज़ूर जब तक आप के अंदर किसी चीज़ की तस्वीर मौजूद न हो उसका होना न होना बे मानी है, हमें मुस्लिम फ़ौज में जिस्मानी दुनियाँ के तसव्वुर पैदा करने है। ऐसा तसव्वुर जो उनकी सोच में बरहना नंगी औरतों की हसींन अदाओं के साथ गर्दिश करता दिखाई दे, इसके बाद वह ख़ुद हमारे जाल में फ़स जाएंगे क्योंकि यह हमारी ईजाद होगी यही वाहिद तरीका है जिससे हम मुसलमानों को शिकस्त दे सकते हैं।
रोनाल्ड, हरमन की बात पर बहुत ज़ियादा संजिदा हो गया और सरगोशी भरे लहजे में बोला: आख़िर तुम कहना क्या चाहते हो? हरमन ने निहायत शातिराना अंदाज़ में तारीख़ का सब से भयानक मंसूबा रोनाल्ड के सामने पेश कर दिया। दुनियाँ के सामने यह आर्ट "पोर्नग्राफी" के नाम से सामने आया।
इस मंसूबे के एक साल बाद सुलतान सलाउद्दीन अय्यूबी को ख़बर मिली कि फौज़ के कुछ नौजवान रात को गाएब पाए जाते हैं और नौजवानों में अक्सर जिस्मानी गुफ्तगूं भी सुनी गई है सुलतान सलाउद्दीन अय्यूबी ने इस बात को इतना संजीदगी से लिया के ख़ुद भेस बदल कर नौजवानों का पीछा किया। यह बात आप को मालूम हो कि सुलतान अय्यूबी भेस बदलने में और आवाज़ बदलने में ख़ुद बहुत माहिर था। तारीख़ में उस के कई बार भेस बदल कर दूसरे शख़्सियत के रूप में दुश्मन से मिलने के वाक़ेआत मौजूद है यहाँ तक कि एक जंग में शिकस्त के बाद सलीबी आला अफ़सर को सुलतान के सामने पेश किया गया सुलतान ने एक अफ़सर से पूछा रात जिस शख़्स से तुमने कहा था मैं अय्यूबी को उसकी सांस की महक से पहचान सकता हूँ तो बताओ वह कौन था? वह सलीबी अफ़सर बोला: हुज़ूर! वह एक अरबी ताजिर था जिसके ग़लत बयानी ने हमें आपके सामने ला खड़ा किया। सुलतान अय्यूबी ने मुस्कुराते हुए कहा: वह मैं ख़ुद था। वह हैरत से सुलतान सलाउद्दीन अय्यूबी को तकता रह गया...
दोस्तों! फ़ौज के कुछ नौजवानों की पुरसरार हरकतों पर सुलतान अय्यूबी ने ख़ुद उनका पीछा किया तो मालूम हुआ फ़ौजी छावनी से कुछ फ़ासले पर एक क़ाफ़िला रुका है जो बज़ाहिर मुसलमान हैं लेकिन उनके पास फ़हश नंगी औरतों की तस्वीरों के कुछ नमूने मौजूद हैं। जब सुलतान ने वह तस्वीरें देखी तो दंग रह गया। उनमें ऐसी मंज़र क़शी की गई थी के कोई भी नौजवान सेक्स के लिए जुनूनी हो सकता था। इसी दौरान सुलतान अय्यूबी को दमिश्क और मिस्र के दिगर शहरों से ख़बर मिली के शहर में फ़हश तस्वीर (सेक्सी फोटो) के क्लब खुल गए हैं जहाँ जिन्सी इश्तेआल अंग्रेज़ी तस्वीर दिखाई जाती है। नौजवान को जिंसियात की बा क़ायदा तालीम दी जाती है। साथ यह भी लिखा था कि मुसलमान नौजवान बड़ी तेज़ी से बुराई की तरफ़ माएल हो रहें हैं।
सुलतान अय्यूबी ने फ़ौरी अपनी जंगी पेश क़दमी रोकी और पोर्नग्राफ़ी के इस नासूर के ख़िलाफ़ महाज़ (मोर्चा) खोला। इस हवाले सुलतान सलाउद्दीन अय्यूबी ने एक तारीख़ी तक़रीर में कहा: हर क़ौम की ताक़त उसका अच्छा या बुरा किरदार हुआ करता है, दुश्मन हमारी असली ताक़त का अंदाज़ा लगा चुका है अब वह सामने से जंग कभी नहीं करेगा इसलिए दुश्मन अब हमारे क़ौमी किरदार पर हमलावर हुआ है क्योंकि ज़रूरी नहीं जंग मैदानों में हो, जंग सोच और रवैयों की भी होती है, जो क़ौम इस पर ग़ालिब आ जाती है वह फ़तहयाब होती है।
दोस्तों! सलीबी इंटलीजेंस (यहूदी) ऑफिसर हरमन एक निहायत ज़हीन और शातिर इंसान था। अगर आप पूरी सलीबी तारीख़ का मुतालेआ करेंगे तो आप को यह शख़्स पूरी तारीख़ में छाया हुआ नज़र आएगा, सलीबी जब हिम्मत हार चुके थे तब इस शख़्स ने उनमें जान डाल दी। इसके मंसूबे पर अमल करते हुए दुनियाँ के मशहूर मंज़र निगारों को मुहँ माँगी क़ीमत पर ख़रीदा गया उनसे ऐसी फ़हश तस्वीर क़शी करवाई गई कि देख कर नज़रें हटाना मुश्किल हो जाता था। वह सेक्स जिस पर लोग एक हद तक तवज्जो देते थे फ़िर उसे बेहद सोचने लगे, सलीबी बादशाहों ने जब अपने इस मंसूबे को सौ फ़ीसद क़ामयाब होते देखा तो अपनी किताबों में इस का तज़किरा बड़ी शान से किया अगरचे सुलतान सलाउद्दीन अय्यूबी ने इस ज़हर को मारने की पूरी कोशिश की लेकिन इस मसले का पूरी तरह ख़ात्मा न हो सका क्योंकि इस ज़हर के असर को देखते हुए हसन बिन सबाह के फ़िरके ने इसे बतौर हथियार अपनाया, सलिबियों से इस आर्ट ग्राफी की मांग की गई। यूं हसन बिन सबाह की पहाड़ों में बनाई हुई पुरसरार जन्नत में एक और हथियार का इज़ाफ़ा हुआ और इसी दौरान सुलतान बैतूल मुक़द्दस के फ़तह के बाद इस दुनियां से चल बसा।
सलीबी अपना दम ख़म खो चुके थे लेकिन उनका तैयार करदाह ज़हर "पोर्नग्राफी" मुसलसल फ़हाशी के जरासीम फैलाता रहा। यूं सदियों बीत गई, ज़माने के रंग ढंग बदल गए और कई सक़ाफ़तें आई और मिट गई...
आख़िर 18 वीं सदी का सूरज तुलु हुआ। यह वह सदी हैं जब साइंस के इल्म में इंक़लाब की फ़ज़ा पैदा होना शुरू हुई थी। 18 वीं सदी के शुरू में "पोर्नग्राफी" पर एक बार फ़िर नए अंदाज में काम शुरू हुआ। इस बार "पोर्नग्राफी" के लिए लकड़ी का इस्तेमाल हुआ। इस के अलावा दरख़्तों को भी काट छाट कर जिन्सी आज़ा की तरह बनाया गया।
फ्रांस में हुए इस तमाशे पर लोगों का हुजूम लग गया। लोग बे पनाह दिलचस्पी से लकड़ी के बने जिंसी सामान और दरख़्तों पर हुई ज़ियादती देखने को जोक दर जोक आ रहें थे और इसी वक़्त से लोगों में जिंसी आज़ाद ख़याली पैदा हुई लेहाज़ा लोगों की दिलचस्पी देखते हुए अमेरिका , फ्रांस और लंदन में "वुड पोर्नग्राफी" के छोटे छोटे पोर्न हाउस खुल गए जो एक छोटा सा जंगल होता था जिसमें पोर्नग्राफी के फ़न पुरे दरख़्तों पर बने होते थे।
दोस्तों! सन 1839 में कैमरा इजाद हुआ इस इजाद ने साइंस की दुनियाँ में एक बहुत बड़ा जादू किया वहीं यह बहुत जल्द पोर्नग्राफी का अहम हथियार बन गया। सन 1855 में पहली बार इसे पोर्नग्राफी के लिए इस्तेमाल किया गया लेकिन इस पोर्नग्राफी में मसला यह था कि कैमरा तस्वीर की तरफ़ एक कॉपी बनाता था इस तस्वीर को बहुत ज़ियादा शेयर नहीं किया जा सकता था इसलिए पोर्नग्राफी मुश्किल का शिकार हो गयी लेकिन यह मसला उस वक़्त मसला न रहा जब सन 1863 में प्रिंटर इजाद हुआ और इस इजाद के साथ ही सेक्स की तस्वीर से भरपूर प्ले कार्ड लोगों के हाथ में आना शुरू हुए। सन 1871 में जिंसी तस्वीर ब्लैक एंड वाइट रिजल्ट में पूरी शिद्दत के साथ मार्केट में आ चुकी थी। इन मार्किटों में फ्रांस के मार्केट सब से आगे थे...
फ़िर सन 1876 में वीडियो कैमरा की टेक्नोलॉजी मंज़रे आम पर आई। इस टेक्नोलॉजी में वीडियो कैमरा एक मिनट में सात तस्वीर को कैप्चर करता था फ़िर उन तस्वीरों को चरख़ा नुमा मशीन पर एक बड़े रोल बंडल की सूरत में चढ़ाया जाता फ़िर उस चरख़े को हाथ से चलाया जाता इस से तस्वीर इस तेज़ी से घूमती थी मानो ऐसा लगता था जैसे वीडियो प्ले हो रही है इसी तरीके अमल को आगे चल कर टीवी टेक्नोलॉजी में इस्तेमाल किया गया।
दोस्तों! वीडियो टेक्नोलॉजी के वजूद में आते ही यूरोपियन देशों में फ़िल्म साज़ इंडस्ट्री का शुरुआती ढांचा बनना शुरू हुआ इसके साथ ही तारीख़ में पहली बार बा क़ायदा "पोर्न इंडस्ट्रीज" का आगाज़ हुआ। पहली पोर्न फ़िल्म 1895 में रिलीज़ हुई। इसे लोमीर ब्रदर्स इंडस्ट्री ने पहली बार अवामी नुमाइश के लिए फ्रांस में पेश किया। इसका डायरेक्टर मिस्टर अल्बर्ट कोचर था। पहली पोर्न फ़िल्म सोलह मिनट की थी जिसमें एक औरत को बरहना, नंगे अंदाज़ में अदाए दिखाते हुए पेश किया गया। यह फ़िल्म निहायत मुनाफ़ा बक्श रिकॉर्ड के साथ मशहूर हुई। इसके साथ ही सेक्स की ख़्वाहिश ज़रूरत से बढ़ कर जूनून में बदल गई। यूरोप के गली कूचे में लोग बेहूदा मज़ाक और छेड़खानी करने लगे फ़िर यही चीज़ आगे चल कर यूरोपियन सक़ाफ़त (कल्चर) का हिस्सा बन गई।
19 वीं सदी के आगाज़ में कैमरा टेक्नोलॉजी में मज़ीद बेहतरी आई। मंज़र पहले से ज़ियादा साफ़ और मेयारी रिकॉर्ड होने लगे। इसके साथ ही फ्रांस और दीगर यूरोपीयन मुल्कों ने सरकारी स्तर पर पोर्न थेटर खोल दिए जहाँ पोर्न अदाकारों की पैदावर का सिलसिला शुरू हुआ। सन 1920 तक यूरोपीयन तहज़ीब पोर्नग्राफी के इस ज़हर में डूब चुकी थी। लोग सरे आम सड़कों को बेड रूम बनाए अपना शौक पूरा करने लगे, साहिल समुन्दर अय्याशी के अड्डे बन गए। मियां बीवी एक दूसरे के ज़िम्मेदारियों से भागने लगे...
सन 1970 में पोर्नग्राफी का ज़हर बर्रे सग़ीर (हिंद व पाक) में दाख़िल करने की कोशिश की गई। पहले पहल यह सिर्फ़ तस्वीर तक सीमित था। इसे वीडियो दिखाने के लिए यूरोपियन कंपनीज़ ने पाकिस्तान व हिंदुस्तान में पोर्न सिनेमा की इजाज़त चाही। इसके जवाब में सिर्फ़ इंकार ही नहीं किया गया बल्कि "पोर्नग्राफी" को बा क़ायदा एक जुर्म क़रार दिया गया।
दूसरी तरफ़ युरोपियन मुल्क़ में सेक्स वीडियो की डिमांड कम होना शुरू हुई क्योंकि एक ही सीन को हर फ़िल्म में देख कर लोग बोर होने लगे। दूसरा बज़ात इनका समाज इतना आज़ाद हो चूका था कि वीडियो देखने की ज़रूरत रोज़ बा रोज़ कम होने लगी इस सूरते हाल से परेशान होकर पोर्न इंडस्ट्री ने पोर्नग्राफी के नए अंदाज पर काम करने के बारे में सोचा। यूं पोर्न कैटेगरी प्रोजेक्ट का आगाज़ हुआ। इस पोर्न कैटेगरी प्रोजेक्ट में सेक्स को कई अक्साम में तक़सीम कर दिया गया। हर किस्म का अपना एक अलग अंदाज होता था...
अगर हम आज किसी पोर्न वेब साइट को ओपन करे तो हमारे सामने एक लिस्ट ओपन हो जाती है जिसमें सेक्स की मुख़तलिफ़ कैटगरीज़ नज़र आती है जब यह प्रोजेक्ट यूरोपीयन अवाम के सामने लाया गया तो देखने वालों में धूम मच गयी क्योंकि इस दफ़ा फ़हाशी के मंज़र पूराने तरीक़े से हट कर रिकॉर्ड किये गए थे। यह प्रोजेक्ट पोर्न इंडस्ट्री के लिए आबे हयात की सूरत इख़्तेयार कर गया क्योंकि इसकी बदौलत हर शख़्स की जिंसी नफ़सियात उभर कर सामने आई। मसलन एक शख़्स धुँआ धार जिंसी मंज़र के बजाए रिलैक्स पोर्न देखना पसंद करता है तो उसके लिए अलग कैटेगरी मौजूद होगी और यक़ीनन पाँच साल बाद रिलैक्स पोर्न देखना ही पसंद करे गा। यूं हर शख़्स के जिंसी ख़्वाहिश के मुताबिक उसे पोर्नग्राफी का नशा मिलने लगा।
आज मुसलमानों में जेहाद का जज़्बा नहीं के बराबर होने की सबसे बड़ी वजह यहीं पोर्नग्राफी की बेगैरती है। आज दुश्मने इस्लाम खासतौर पर अमेरिका, इस्राईल व ब्रिटेन और इनके टुकड़ों पर पलनेवाले अरब हुक्मरान और आर.एस.एस जैसे ख़बीस बड़ी आसानी से इस्लामी मुक़द्दसात की तौहीन करते नज़र आ रहे हैं और मुस्लिम नौजवान अपनी बेहयाई की वजह से ख़ामोश तमाशाई बना चुप खड़ा नज़र आता हैं।
अल्लाह तआला उम्मते मुस्लिमा को इस बेहयाई से महफूज़ रखें।
आमीन......
हकीम मा जफरुद्दीन जफर
लेखक व वरिष्ठ पत्रकार
नगीना जिला बिजनौर उत्तर प्रदेश
9027252538
9411833650
दोस्तों! तारीख़ में सब से पहले पोर्नग्राफी बतौर हथियार सुलतान सलाउद्दीन अय्यूबी (सन 1137 से 1193) के दौरे हुक़ूमत में हुई। इसे बतौर हथियार सब से पहले सलीबी (अंग्रेज़) बादशाहों ने इस्तेमाल किया।
कहानी कुछ यूँ है कि सलीबी हर मैदान में मुसलमान नौजवानों के हाथों शिकस्त होने से लगातार परेशांन थे। इस्लामी फौज़ सलीबी सेना पर भारी साबित हो रही थी सलिबियों की सोच की धारा उस वक़्त बदली जब डेढ़ लाख मुसलमान फौज़ ने अटलांटिक तट पर पंद्रह लाख सलिबी लड़ाकों की लाशों का ढेर लगा दिया, इस मौके पर सलीबी फौज़ का बादशाह रोनाल्ड फ़ूट फ़ूट कर रोया और एक बड़ी मीटिंग का आगाज़ हुआ। इस मीटिंग में मुस्लिम और सलीबी फ़ौजों की तुलना की गई और मालूम हुआ मुसलमान रात भर सजदों
में रोते हैं और दिन भर मैदानों में ललकारते हैं उनके अंदर एक दुनियाँ आबाद है जिसे वह ईमान कहते हैं यही ईमान उन्हें दुनियाँ के हर खौफ़ और डर और लज़्ज़त परस्ती से बहुत ऊपर उन्हें बेहतरीन शुजाअ लड़ाका बनाए रखता है, जबकि सलीबी फ़ौजें रात भर ज़िना और अय्याशी की महफिलों में और दुनियाँ की रंग रैलियों में मशगूल रहते हैं लेहाज़ा दुनियाँ छोड़ कर एक नए जहाँ का खौफ़ उन्हें शिकस्त फाश से दो चार करता है इसके अलावा दौराने जंग मुसलमान फ़ौजियों की आँखो से जो वहशत टपकती है वह सलीबी कुव्वतों पर खौफ़ तारी कर देती है इसके साथ "नारे तक़बीर" की फ़लक़ शिगाफ़ सदाए और मुसलमानों का अपनी अपनी जगह फ़ौलाद बन जाना भी सलिबियों के लिए एक मसला बन गया था...
सलिबियों की इस तारीख़ी मीटिंग में हरमन नामी (यहूदी) इंटेलीजेंस ऑफिसर भी मौजूद था। यह वह शख़्स था जिसने सलीबी तारीख़ में मुसलमानों को सब से ज़ियादा नुक़सान पहुंचाया था। यह निहायत शातिर व ज़हीन और फ़ित्नाबाज़ शख़्स था इसने मुसलमानों और सलीबी नौजवानों की नफ़सियात पर बात करते हुए कहा कि मेरी साठ सालह ज़िन्दगी का तजुर्बा है कि एक अय्याशी पसंद वजूद कभी भी ज़िन्दगी के मैदान में बेहतरीन सिपाही नहीं बन सकता ख़ुसूसन वह लोग जो सेक्स के मुआमलात में ज़ियादा दिलचस्पी रखते हैं उनकी जिस्मानी और रूहानी ताक़तें ख़त्म होकर रह जाती हैं अगर मैं मुस्लिम फ़ौज की बात करूँ तो मुसलमान फ़ौज में ऐसे नौजवानों की तादाद ज़ियादा है जो सेक्स की लज़्ज़त से अक्सर ना आशना है और
जो शादी शुदा भी हैं वह भी इस चीज़ को एक हद तक आज़मा पाते हैं। तस्वीर की रेनाइयाँ और खूबसूरत नज़ारे हमेशा उनकी पहुँच से दूर रहें हैं उन्हें मज़हब से आगे और पीछे कुछ नहीं दिखाई देता लेहाज़ा हम अगर उनमें जिस्मानी भूख को पैदा कर दें तो उनकी सोच और नज़रियात (आइडियालाॅजी) को कमज़ोर किया जा सकता है इस मिशन की क़ामयाबी की एक मिसाल वह मुसलमान बादशाह भी है जो शुरू में सुलतान अय्यूबी के साथ थे लेकिन हमारी खूबसूरत लड़कियों ने जब से उन्हें अपनी हसींन अदाओं का असीर किया है
तब से वह ख़ुदा और रसूल स. को जानते ही नहीं हैं उन्हें सुलतान अय्यूबी अपना सब से बड़ा दुश्मन नज़र आता है उन मुसलमान वज़ीफ़ा ख़ोरों में से जर्नल भी शामिल हैं जिनकी हुक़ूमत बहादुरी में मैदानों के नक़्शे बदल डाला करते थे आज वह सलिबियों से निगाहें झुका कर बात करते हैं क्योंकि हम उनके अंदर औरत और जिन्सियात की रूह दाख़िल कर चुके हैं अगर यही तरीक़ा पुरे मुसलमान फ़ौज पर आज़माया जाए तो यक़ीनन हम क़ामयाब होंगें क्योंकि मुसलमान नौजवानों के लिए यह बिल्कुल नई चीज़ होगी और वह इनके लिए जुनूनी हो सकते हैं।
हरमन के इस ख़याल पर रोनाल्ड ने सवाल उठाया और उसने कहा: हम बहुत बार निहायत ख़ूबसूरत लड़कियां मुसलमान फ़ौज में दाख़िल कर चुके हैं लेकिन मुसलमान फ़ौज उन हसींन लड़कियों की तरफ़ देखने की तक़लीफ़ भी नहीं करती और आख़िर लड़कियाँ मुसलमान फ़ौज का किरदार देख कर सलीबी हिमायत छोड़ जाती हैं लेहाज़ा तुम्हारा यह मंसूबा नाकाम है।
हरमन ने फौरन जवाब पेश करते हुए कहा: हुज़ूर जब तक आप के अंदर किसी चीज़ की तस्वीर मौजूद न हो उसका होना न होना बे मानी है, हमें मुस्लिम फ़ौज में जिस्मानी दुनियाँ के तसव्वुर पैदा करने है। ऐसा तसव्वुर जो उनकी सोच में बरहना नंगी औरतों की हसींन अदाओं के साथ गर्दिश करता दिखाई दे, इसके बाद वह ख़ुद हमारे जाल में फ़स जाएंगे क्योंकि यह हमारी ईजाद होगी यही वाहिद तरीका है जिससे हम मुसलमानों को शिकस्त दे सकते हैं।
रोनाल्ड, हरमन की बात पर बहुत ज़ियादा संजिदा हो गया और सरगोशी भरे लहजे में बोला: आख़िर तुम कहना क्या चाहते हो? हरमन ने निहायत शातिराना अंदाज़ में तारीख़ का सब से भयानक मंसूबा रोनाल्ड के सामने पेश कर दिया। दुनियाँ के सामने यह आर्ट "पोर्नग्राफी" के नाम से सामने आया।
इस मंसूबे के एक साल बाद सुलतान सलाउद्दीन अय्यूबी को ख़बर मिली कि फौज़ के कुछ नौजवान रात को गाएब पाए जाते हैं और नौजवानों में अक्सर जिस्मानी गुफ्तगूं भी सुनी गई है सुलतान सलाउद्दीन अय्यूबी ने इस बात को इतना संजीदगी से लिया के ख़ुद भेस बदल कर नौजवानों का पीछा किया। यह बात आप को मालूम हो कि सुलतान अय्यूबी भेस बदलने में और आवाज़ बदलने में ख़ुद बहुत माहिर था। तारीख़ में उस के कई बार भेस बदल कर दूसरे शख़्सियत के रूप में दुश्मन से मिलने के वाक़ेआत मौजूद है यहाँ तक कि एक जंग में शिकस्त के बाद सलीबी आला अफ़सर को सुलतान के सामने पेश किया गया सुलतान ने एक अफ़सर से पूछा रात जिस शख़्स से तुमने कहा था मैं अय्यूबी को उसकी सांस की महक से पहचान सकता हूँ तो बताओ वह कौन था? वह सलीबी अफ़सर बोला: हुज़ूर! वह एक अरबी ताजिर था जिसके ग़लत बयानी ने हमें आपके सामने ला खड़ा किया। सुलतान अय्यूबी ने मुस्कुराते हुए कहा: वह मैं ख़ुद था। वह हैरत से सुलतान सलाउद्दीन अय्यूबी को तकता रह गया...
दोस्तों! फ़ौज के कुछ नौजवानों की पुरसरार हरकतों पर सुलतान अय्यूबी ने ख़ुद उनका पीछा किया तो मालूम हुआ फ़ौजी छावनी से कुछ फ़ासले पर एक क़ाफ़िला रुका है जो बज़ाहिर मुसलमान हैं लेकिन उनके पास फ़हश नंगी औरतों की तस्वीरों के कुछ नमूने मौजूद हैं। जब सुलतान ने वह तस्वीरें देखी तो दंग रह गया। उनमें ऐसी मंज़र क़शी की गई थी के कोई भी नौजवान सेक्स के लिए जुनूनी हो सकता था। इसी दौरान सुलतान अय्यूबी को दमिश्क और मिस्र के दिगर शहरों से ख़बर मिली के शहर में फ़हश तस्वीर (सेक्सी फोटो) के क्लब खुल गए हैं जहाँ जिन्सी इश्तेआल अंग्रेज़ी तस्वीर दिखाई जाती है। नौजवान को जिंसियात की बा क़ायदा तालीम दी जाती है। साथ यह भी लिखा था कि मुसलमान नौजवान बड़ी तेज़ी से बुराई की तरफ़ माएल हो रहें हैं।
सुलतान अय्यूबी ने फ़ौरी अपनी जंगी पेश क़दमी रोकी और पोर्नग्राफ़ी के इस नासूर के ख़िलाफ़ महाज़ (मोर्चा) खोला। इस हवाले सुलतान सलाउद्दीन अय्यूबी ने एक तारीख़ी तक़रीर में कहा: हर क़ौम की ताक़त उसका अच्छा या बुरा किरदार हुआ करता है, दुश्मन हमारी असली ताक़त का अंदाज़ा लगा चुका है अब वह सामने से जंग कभी नहीं करेगा इसलिए दुश्मन अब हमारे क़ौमी किरदार पर हमलावर हुआ है क्योंकि ज़रूरी नहीं जंग मैदानों में हो, जंग सोच और रवैयों की भी होती है, जो क़ौम इस पर ग़ालिब आ जाती है वह फ़तहयाब होती है।
दोस्तों! सलीबी इंटलीजेंस (यहूदी) ऑफिसर हरमन एक निहायत ज़हीन और शातिर इंसान था। अगर आप पूरी सलीबी तारीख़ का मुतालेआ करेंगे तो आप को यह शख़्स पूरी तारीख़ में छाया हुआ नज़र आएगा, सलीबी जब हिम्मत हार चुके थे तब इस शख़्स ने उनमें जान डाल दी। इसके मंसूबे पर अमल करते हुए दुनियाँ के मशहूर मंज़र निगारों को मुहँ माँगी क़ीमत पर ख़रीदा गया उनसे ऐसी फ़हश तस्वीर क़शी करवाई गई कि देख कर नज़रें हटाना मुश्किल हो जाता था। वह सेक्स जिस पर लोग एक हद तक तवज्जो देते थे फ़िर उसे बेहद सोचने लगे, सलीबी बादशाहों ने जब अपने इस मंसूबे को सौ फ़ीसद क़ामयाब होते देखा तो अपनी किताबों में इस का तज़किरा बड़ी शान से किया अगरचे सुलतान सलाउद्दीन अय्यूबी ने इस ज़हर को मारने की पूरी कोशिश की लेकिन इस मसले का पूरी तरह ख़ात्मा न हो सका क्योंकि इस ज़हर के असर को देखते हुए हसन बिन सबाह के फ़िरके ने इसे बतौर हथियार अपनाया, सलिबियों से इस आर्ट ग्राफी की मांग की गई। यूं हसन बिन सबाह की पहाड़ों में बनाई हुई पुरसरार जन्नत में एक और हथियार का इज़ाफ़ा हुआ और इसी दौरान सुलतान बैतूल मुक़द्दस के फ़तह के बाद इस दुनियां से चल बसा।
सलीबी अपना दम ख़म खो चुके थे लेकिन उनका तैयार करदाह ज़हर "पोर्नग्राफी" मुसलसल फ़हाशी के जरासीम फैलाता रहा। यूं सदियों बीत गई, ज़माने के रंग ढंग बदल गए और कई सक़ाफ़तें आई और मिट गई...
आख़िर 18 वीं सदी का सूरज तुलु हुआ। यह वह सदी हैं जब साइंस के इल्म में इंक़लाब की फ़ज़ा पैदा होना शुरू हुई थी। 18 वीं सदी के शुरू में "पोर्नग्राफी" पर एक बार फ़िर नए अंदाज में काम शुरू हुआ। इस बार "पोर्नग्राफी" के लिए लकड़ी का इस्तेमाल हुआ। इस के अलावा दरख़्तों को भी काट छाट कर जिन्सी आज़ा की तरह बनाया गया।
फ्रांस में हुए इस तमाशे पर लोगों का हुजूम लग गया। लोग बे पनाह दिलचस्पी से लकड़ी के बने जिंसी सामान और दरख़्तों पर हुई ज़ियादती देखने को जोक दर जोक आ रहें थे और इसी वक़्त से लोगों में जिंसी आज़ाद ख़याली पैदा हुई लेहाज़ा लोगों की दिलचस्पी देखते हुए अमेरिका , फ्रांस और लंदन में "वुड पोर्नग्राफी" के छोटे छोटे पोर्न हाउस खुल गए जो एक छोटा सा जंगल होता था जिसमें पोर्नग्राफी के फ़न पुरे दरख़्तों पर बने होते थे।
दोस्तों! सन 1839 में कैमरा इजाद हुआ इस इजाद ने साइंस की दुनियाँ में एक बहुत बड़ा जादू किया वहीं यह बहुत जल्द पोर्नग्राफी का अहम हथियार बन गया। सन 1855 में पहली बार इसे पोर्नग्राफी के लिए इस्तेमाल किया गया लेकिन इस पोर्नग्राफी में मसला यह था कि कैमरा तस्वीर की तरफ़ एक कॉपी बनाता था इस तस्वीर को बहुत ज़ियादा शेयर नहीं किया जा सकता था इसलिए पोर्नग्राफी मुश्किल का शिकार हो गयी लेकिन यह मसला उस वक़्त मसला न रहा जब सन 1863 में प्रिंटर इजाद हुआ और इस इजाद के साथ ही सेक्स की तस्वीर से भरपूर प्ले कार्ड लोगों के हाथ में आना शुरू हुए। सन 1871 में जिंसी तस्वीर ब्लैक एंड वाइट रिजल्ट में पूरी शिद्दत के साथ मार्केट में आ चुकी थी। इन मार्किटों में फ्रांस के मार्केट सब से आगे थे...
फ़िर सन 1876 में वीडियो कैमरा की टेक्नोलॉजी मंज़रे आम पर आई। इस टेक्नोलॉजी में वीडियो कैमरा एक मिनट में सात तस्वीर को कैप्चर करता था फ़िर उन तस्वीरों को चरख़ा नुमा मशीन पर एक बड़े रोल बंडल की सूरत में चढ़ाया जाता फ़िर उस चरख़े को हाथ से चलाया जाता इस से तस्वीर इस तेज़ी से घूमती थी मानो ऐसा लगता था जैसे वीडियो प्ले हो रही है इसी तरीके अमल को आगे चल कर टीवी टेक्नोलॉजी में इस्तेमाल किया गया।
दोस्तों! वीडियो टेक्नोलॉजी के वजूद में आते ही यूरोपियन देशों में फ़िल्म साज़ इंडस्ट्री का शुरुआती ढांचा बनना शुरू हुआ इसके साथ ही तारीख़ में पहली बार बा क़ायदा "पोर्न इंडस्ट्रीज" का आगाज़ हुआ। पहली पोर्न फ़िल्म 1895 में रिलीज़ हुई। इसे लोमीर ब्रदर्स इंडस्ट्री ने पहली बार अवामी नुमाइश के लिए फ्रांस में पेश किया। इसका डायरेक्टर मिस्टर अल्बर्ट कोचर था। पहली पोर्न फ़िल्म सोलह मिनट की थी जिसमें एक औरत को बरहना, नंगे अंदाज़ में अदाए दिखाते हुए पेश किया गया। यह फ़िल्म निहायत मुनाफ़ा बक्श रिकॉर्ड के साथ मशहूर हुई। इसके साथ ही सेक्स की ख़्वाहिश ज़रूरत से बढ़ कर जूनून में बदल गई। यूरोप के गली कूचे में लोग बेहूदा मज़ाक और छेड़खानी करने लगे फ़िर यही चीज़ आगे चल कर यूरोपियन सक़ाफ़त (कल्चर) का हिस्सा बन गई।
19 वीं सदी के आगाज़ में कैमरा टेक्नोलॉजी में मज़ीद बेहतरी आई। मंज़र पहले से ज़ियादा साफ़ और मेयारी रिकॉर्ड होने लगे। इसके साथ ही फ्रांस और दीगर यूरोपीयन मुल्कों ने सरकारी स्तर पर पोर्न थेटर खोल दिए जहाँ पोर्न अदाकारों की पैदावर का सिलसिला शुरू हुआ। सन 1920 तक यूरोपीयन तहज़ीब पोर्नग्राफी के इस ज़हर में डूब चुकी थी। लोग सरे आम सड़कों को बेड रूम बनाए अपना शौक पूरा करने लगे, साहिल समुन्दर अय्याशी के अड्डे बन गए। मियां बीवी एक दूसरे के ज़िम्मेदारियों से भागने लगे...
सन 1970 में पोर्नग्राफी का ज़हर बर्रे सग़ीर (हिंद व पाक) में दाख़िल करने की कोशिश की गई। पहले पहल यह सिर्फ़ तस्वीर तक सीमित था। इसे वीडियो दिखाने के लिए यूरोपियन कंपनीज़ ने पाकिस्तान व हिंदुस्तान में पोर्न सिनेमा की इजाज़त चाही। इसके जवाब में सिर्फ़ इंकार ही नहीं किया गया बल्कि "पोर्नग्राफी" को बा क़ायदा एक जुर्म क़रार दिया गया।
दूसरी तरफ़ युरोपियन मुल्क़ में सेक्स वीडियो की डिमांड कम होना शुरू हुई क्योंकि एक ही सीन को हर फ़िल्म में देख कर लोग बोर होने लगे। दूसरा बज़ात इनका समाज इतना आज़ाद हो चूका था कि वीडियो देखने की ज़रूरत रोज़ बा रोज़ कम होने लगी इस सूरते हाल से परेशान होकर पोर्न इंडस्ट्री ने पोर्नग्राफी के नए अंदाज पर काम करने के बारे में सोचा। यूं पोर्न कैटेगरी प्रोजेक्ट का आगाज़ हुआ। इस पोर्न कैटेगरी प्रोजेक्ट में सेक्स को कई अक्साम में तक़सीम कर दिया गया। हर किस्म का अपना एक अलग अंदाज होता था...
अगर हम आज किसी पोर्न वेब साइट को ओपन करे तो हमारे सामने एक लिस्ट ओपन हो जाती है जिसमें सेक्स की मुख़तलिफ़ कैटगरीज़ नज़र आती है जब यह प्रोजेक्ट यूरोपीयन अवाम के सामने लाया गया तो देखने वालों में धूम मच गयी क्योंकि इस दफ़ा फ़हाशी के मंज़र पूराने तरीक़े से हट कर रिकॉर्ड किये गए थे। यह प्रोजेक्ट पोर्न इंडस्ट्री के लिए आबे हयात की सूरत इख़्तेयार कर गया क्योंकि इसकी बदौलत हर शख़्स की जिंसी नफ़सियात उभर कर सामने आई। मसलन एक शख़्स धुँआ धार जिंसी मंज़र के बजाए रिलैक्स पोर्न देखना पसंद करता है तो उसके लिए अलग कैटेगरी मौजूद होगी और यक़ीनन पाँच साल बाद रिलैक्स पोर्न देखना ही पसंद करे गा। यूं हर शख़्स के जिंसी ख़्वाहिश के मुताबिक उसे पोर्नग्राफी का नशा मिलने लगा।
आज मुसलमानों में जेहाद का जज़्बा नहीं के बराबर होने की सबसे बड़ी वजह यहीं पोर्नग्राफी की बेगैरती है। आज दुश्मने इस्लाम खासतौर पर अमेरिका, इस्राईल व ब्रिटेन और इनके टुकड़ों पर पलनेवाले अरब हुक्मरान और आर.एस.एस जैसे ख़बीस बड़ी आसानी से इस्लामी मुक़द्दसात की तौहीन करते नज़र आ रहे हैं और मुस्लिम नौजवान अपनी बेहयाई की वजह से ख़ामोश तमाशाई बना चुप खड़ा नज़र आता हैं।
अल्लाह तआला उम्मते मुस्लिमा को इस बेहयाई से महफूज़ रखें।
आमीन......
हकीम मा जफरुद्दीन जफर
लेखक व वरिष्ठ पत्रकार
नगीना जिला बिजनौर उत्तर प्रदेश
9027252538
9411833650
No comments:
Post a Comment