महेंद्र सिंह टिकैत ने 1988 में यह चेतावनी, दिल्ली में वोट क्लब में दिए जा रहे एक बड़े भारी धरने को संबोधित करते हुए दी थी। हालांकि ये वो दौर था, जब किसानों को महज दिल्ली पहुचने से रोकने के लिए सरकार अपनी ताकत लगाने से परहेज करती थी।
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किसान आंदोलन का दौर है, तो महेंद्र सिंह टिकैत की याद आना लाजिमी है। किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष स्व महेंद्र सिंह टिकैत को लोग बाबा टिकैत और महात्मा टिकैत के नाम से भी बुलाते थे ! किसानों की समस्याओ के लिए सदा संघर्षरत टिकैत उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानो में प्रसिद्ध थे !
महेन्द्र सिंह टिकैत का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गाँव में एक जाट परिवार में हुआ था। 1986 में ट्यूबवेल की बिजली दरों को बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ मुज़फ्फरनगर के शामली से एक बड़ा आंदोलन शुरु किया था। जिसमे मार्च 1987 में प्रसाशन और राजनितिक लापरवाही से संघर्ष हुआ और दो किसानो और पीएसी के एक जवान की मौत हो गयी।
इसके बाद टिकेत राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गये ! टिकेत की अगुवाई में आन्दोलन इस कदर मजबूत हुआ कि प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह को खुद सिसौली ग्राम में आकर पंचायत को संबोधित करना पड़ा और किसानो को राहत दी गयी !
आन्दोलन के बाद टिकैत की छवि मजबूत हुई और देशभर में घूम घूम कर उन्होंने किसानो के हक़ के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया ! कई बार राजधानी दिल्ली में भी धरने प्रदर्शन किये।
टिकैत जाटों के रघुवंशी गौत्र से थे लेकिन बालियान खाप में सभी बिरादरियां थीं। टिकैत ने खाप व्यवस्था को समझा और ‘जाति’ से अलग हटकर सभी बिरादरी के किसानो के लिए काम करना शुरू किया ! किसानो में उनकी लोकप्रियता बढती जा रही थी ! इसी क्रम में उन्होंने 17 अक्टूबर 1986 को किसानों के हितों की रक्षा के लिए एक गैर राजनीतिक संगठन ‘भारतीय किसान यूनियन’ की स्थापना की।
किसानो के लिए लड़ाई लड़ते हुए अपने पूरे जीवन में टिकेत करीब 20 बार से ज्यादा जेल भी गये ! टिकेत की पंचायतो और संगठन में जाति धर्म लेकर कभी भेदभाव नहीं दिखा ! जाट समाज के साथ ही अन्य कृषक बिरादरी भी उनके साथ उनके समर्थन में होती थी।
खाद पानी बिजली की समस्याओं को लेकर जब किसान सरकारी दफ्तरों में जाते तो उनकी समस्याओं को सरकारी अधिकारी गंभीरता से नहीं लेते थे ! टिकैत ने किसानो की समस्याओं को जोरदार तरीके से रखना शुरू किया !
उनका आंदोलन हमेशा गैर राजनैतिक रहा। मगर हल्का सा इशारा चुनाव की दिशा भी बदल देता। तो सियासी लोग उनसे करीबी बनाने का बहाना ढूँढ़ते ! उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर कई अन्य कद्दावर नेता भी बाबा के यहाँ आते रहते। लेकिन उनके लिए किसानो की समस्याए और लड़ाई राजनीति से ऊपर रही। 15 मई 2011 को 76 वर्ष की उम्र में केंसर के कारण महेंद्र सिंह टिकैत की म्रत्यु हो गयी।
किसानों की समस्याएं बदलते दौर के साथ बदलती रही हैं। मगर तब उन्हें कहने-सुनने का मंच तैयार करने दिया जाता था। आज दिल्ली पराई हो गई है। भारत को दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए इंडिया ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
तो पलटकर, बोट क्लब पर दहाड़ते इस किसान नेता की तस्वीर उस सुनहरे दौर की याद दिलाती है, जब भारत के लोकतंत्र में किसान का भी हिस्सा हुआ करता था।
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सुनील नागर द्वारा लिखित और द पॉपुलर इंडियन में प्रकाशित लेख से ली गयी जानकारियों पर आधारित
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